भोपाल – एक मध्यमवर्गीय परिवार ने अपने इकलौते बेटे को करियर बनाने के लिए इंदौर भेजा लेकिन वहां से वह लेकर लौटा शराब की लत । कुछ दिन की लुका – छिपी के बाद जब पर्दा हटा तो पता चला कि घर का इकलौता चिराग बुरी तरह से नशे के दलदल में डूब चुका है । परिवार ने झाड़ फूंक से लेकर दवाइयां तक आजमाई लेकिन कुछ नहीं हुआ । आखिर जीवन के पांच कीमती साल बरबाद करने के बाद जिस दिन युवक ने खुद को बदलने की कसम खाई तब नशामुक्ति केन्द्र और फिर एल्कोहल एनॉनिमस के मिले – जुले प्रयास के साथ ताकत लगाकर वह नशे के दलदल से बाहर आ सका ।

मजे के रास्ते नशे में डूबने और फिर बमुश्किल निकलने की यह कहानी है शहर के ईश कुमार की । परिवार ने 2010 में ईश को एमबीए करने के लिए इंदौर भेजा था । ईश बताते हैं, पहले मैं कभी – कभार पीता था, लेकिन जब भी पीता मुझे पेट भर शराब चाहिए होती थी । जब तक मैं ब्लैकआउट में नहीं पहुंच जाऊं या मेरी आंखें बंद ना हो जाए । वहां मैं बेधड़क शराब पीता था क्योंकि वहां मुझे रोकने औद देखने वाला कोई नहीं था । कोर्स के दौरान तीन सालों में मैं पक्का शराबी बन चुका था, लेकिन मैं यह मानता नहीं था ।

2013 में एमबीए करके वापस आया तब तक मेरे घर वालों को कुछ पता नहीं था । मैंने भोपाल में भी शराब पीना जारी रखा मैं कभी – कभार शराब पीकर रात को लेट घर आता था तो घरवाले बदबू के बारे में पूछते थे, तो कुछ भी बहाना बना देता था । एक समय हालात ऐसे हो गए कि मैं सुबह उठते ही पहले शराब की दुकान जाने लगा । जो जरूरत शाम होते ही होती थी अब वह सुबह भी होने लगी । कई बार तो यह हुआ कि मैं शराब की दुकान खुलने से पहले ही वहां पहुंच जाता । कुछ समय बाद उठते ही मेरे हाथ पांव कांपने लगे थे, शरीर सिर्फ शराब मांगता था कि कोई मुझे शराब ला दे या में भाग कर जाऊं और शराब पी लूं । कई बार में शराब पीकर शराब की दुकान, मैदान, सड़क पर सो जाता, जब होश आता था तब पता चलता था कि मैं कहां पड़ा हूं ।

मुझे शराब मैं मजा आना बंद हो चुका था, मैं बस बिना कारण पिए जा रहा था । परिवार वाले भी मुझसे परेशान हो चुके थे वे डॉक्टर बाबा झाड़ – फूंक दवाइयां सब कर चुके थे, लेकिन मेरे जीवन में कोई बदलाव नहीं आया और आखिर हारकर उन्होंने मुझे श्री जीकेएस नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती करवा दिया क्योंकि मेरी शराब और में रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे । नशा मुक्ति केंद्र से निकलने के बाद मुझे एल्कोहलिक एनोनिमस संस्था मिली वहां जाने से और बातें सुनने से और समझने से मुझे पता चला कि मेरे साथ क्या हो रहा था, क्यों मैं इतनी शराब पी रहा था । इन सबने मुझे दूसरा जीवन दिया है ।

फिल्म संजू से मिलती है शिवांग की कहानी , 10 साल के बाद किया मैदान फतह

भोपाल . आप, हाथ पर यह लकीरें देख रहे हैं, यहां सिर्फ टैटू नहीं है, बल्कि उनमें छिपे कट्स के कई निशान भी हैं, नशे के लिए घरवाले रुपए नहीं देते थे तो मैं उन्हें डराने के लिए ब्लेड से कट मार लेता था । यह कहते हुए शिवांग अपने दोनों हाथ आगे कर देते हैं । 15 साल की उम्र में पहली बार शराब चखने वाले युवा शिवांग की कहानी फिल्म संजू से मिलती है । दोस्तों की सिखाई नशे की लत पूरी करने के लिए गाड़ी गिरवी रखी, मारपीट की, जेल तक जाना पड़ा, आखिर में आंख खुली तो समझ आया जवानी के 10 सालों के साथ लाखों रुपए सहित बहुत कुछ खो चुका हूँ ।

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इंजॉय करने के चक्कर में हो गया था नशेड़ी 

मैं 11 वीं क्लास में था । एक शादी में शराब पीते लोगों ने मुझसे कहा चखो डांस अच्छा होगा ।उस दिन मैंने पहली बार पी, अगले दिन मुझे कुछ याद नहीं था, सबने बताया तूने खूब हंगामा किया । कुछ दिन बाद सोचा इस बार कम पीकर देखता हूँ । मैंने दोस्तों को पीने के लिए फोन किया मैंने कम पी और खूब इंजॉय किया ।और फिर मैंने ये सोच बना ली कि थोड़ी थोड़ी सी पीकर मजा करूंगा ।

शिवांग बताते हैं , मेरे पिता सतपुड़ा में ग्रेड वन ऑफिसर हैं, आप बेझिझक मेरी पहचान सामने लाइए, मैं ये सब इसलिए बता रहा हूँ, ताकि लोगों की ऑंखें खुलें । वे देख सकें कि उनके बच्चे कहां और किस दिशा में जा रहे हैं । खैर, फिर मैंने थोड़ी – थोड़ी पीनी शुरू कर दी, पहले 10 दिन में, फिर हफ्ते में एक – दो  बार और फिर बार – बार पीने लगा । बीच के दिन कम होते जा रहे थे, और शराब की मात्रा बढ़ती जा रही थी ।

ऐसे लगी थी गांजे की लत

पहले मैं सिर्फ शराब पीता था, लेकिन डेढ़ साल के अंदर गुटखा, सिगरेट, बीड़ी भी पीने लगा । 18 का होते तक मेरी शर्म और डर खत्म हो गया, मैं रोज सुबह – शाम पीने लगा । नशा चढ़ाने के लिए मैं नीट पिया करता था । डेढ़ साल बाद तबियत खराब हुई, उल्टियां हुईं, मैं जब भी पीता उल्टियां होती, मैंने घर तो बताया नहीं बल्कि नशे के विकल्प तलाशने शुरू किए, भांग खाई, गांजा पीना शुरू किया, नशे की दवाइयां, चरस और जो भी हो सकते थे वे सारे नशे किए ।

खुद को किया नशे से आजाद , अब कर रहे अपने जैसों की मदद

खुद को किया नशे से आजाद , अब कर रहे अपने जैसों की मदद

जब हालत ज्यादा खराब हुई तो घर वालों ने नशा मुक्ति केन्द्र में भेजा । एक दिन में वहां से भाग खड़ा हुआ । फिर यह सिलसिला चलता रहा , कहीं 7 दिन तो कहीं 10 दिन रहा । मुझे उनका व्यवहार अच्छा नहीं लगता था , दरअसल मैं यह नहीं मानता था कि मैं एडिक्ट हो चुका हूँ । आखिर में 2015-16 में श्री जीकेऐस नशा मुक्ति केंद्र में एडमिट हुआ । वहां पहली बार लगभग हम उम्र के केयरटेकर सामर्थ डण्डौतिया मिले । उनकी कहानी भी मुझसे मिलती – जुलती थी । कहीं न कहीं जो दोस्त की कमी थी वह पूरी हुई , उन्होंने मेरे केस को चैलेंज की तरह लिया । फिर नशा छोड़ा , दस साल बाद 12 वीं पास की और अब बीएएलएलबी कर रहा हूँ । शिवांश नीलबड़ में खुद का नशा मुक्ति केन्द्र चलाते हैं जहां वे अपने जैसे युवाओं की मदद कर उन्हें नशे के दलदल से बाहर आने में मदद करते हैं ।

मैं Mukesh हूँ ये मेरे शराबीपन की कहानी है

मेरा नाम मुकेश है और मैं शिवपुरी जिले के लुकवासा गाँव का रहने वाला हूँ। मैंने 12 साल की उम्र से 15 साल तक ऐसे नशा पकड़ा के मेरी पूरी ज़िन्दगी बर्बाद हो गई।मेरे नशे की शुरुआत का कारण बने मेरे पिता और मेरी जिज्ञासा। असल में मेरे घर में मेरे पिताजी ड्रिंक लेते थे तो धीरे धीरे उनकी जो शराब बच जाती थी क्वाटर में वो थोड़ी सी शराब मैं इस जिज्ञासा से लेना सीख गया कि देखें इसमें ऐसा क्या है।फिर जब ये शराब मेरी आदत बन गई तो मैं 15 साल तक दारू पीता रहा किसी ने मुझ पर ध्यान नहीं दिया।

मेरी दारू पी-पी कर इतनी बुरी स्तिथि हो गई थी कि जब मेरे पास दहेज़ आया मेरी शादी का तो मैंने दहेज़ के सारे बर्तन थाली वगैहरा सब बेच खाए यहाँ तक की मैंने चाय पीने के मग्गे तक बेच खाए। छलनी-वनली, गिलास, सोफे जो दहेज़ में मिलते हैं सामान अलमारी, कूलर और अपने भईया के साथ-साथ परिवार के भी सामान बेच दिए और जब मेरे पास कुछ नहीं बचा तो खाने को भी बर्तन नहीं बचे खाना बनाने को भी तब मैं जो दीवाल पे तस्वीर लगी थी (छाप) उस छाप पे आटा उसन के रोटी बना के खाता था इतनी समस्या आ चुकी थी।

फिर इसके बाद में मेरे पास बेचने को कुछ नहीं बचा तो मुझे घर दिखने लगे कि घरों का क्या करें तो मैंने अपने घरों के पाटिया तक बेच खाए, पत्थर बेच खाए मट्टी बेच खाई। फिर इसके बाद में जब वो भी बिक गए फिर सोची अब ये प्लाट हैं ये और बेच दो। तो 10 -15 दिन में प्लाट बिक गए वो पैसे भी नशे में चले गए। फिर जो घर में गाड़ी-घोडा, ट्रेक्टर जो था बिल्कुल कुछ भी नहीं बचा, बचे वे ओढ़ने बिछाने के कपड़े वो भी बिच गए। यानि कि फिर एन्ड में आके कोई रिश्तेदार ने नहीं बचा पाया मैंने सोचा कि भईया तू यहाँ से चल हम बिल्कुल पागल कि हालत में हो गए। कहीं कि भी स्टेशन पे जाके सोएं कहीं से भी किसी से भी मांग के खाना खालें कुछ समय ऐसे भी गुजरा। फिर धीरे धीरे धीरे धीरे बहोत सी समस्याएं ऐसी काटीं, ठंडें काटीं 4 -4 महीने की कहीं भी पड़े हैं ठंडों में न ओढ़ने न बिछाने बहोत समय ऐसे भी काटना पड़ा परेशानी का। धीरे धीरे फिर घर वालों ने सब कुछ कर लिया जानकारों के यहाँ ले गए, दुनियां में ले गए, सारी जगह की दवाई खिला लीं पर कोई आराम नहीं मिल पाया।

स्तिथि बिल्कुल मरने लायक हो गई तो घर वाले फिर नशा मुक्ति केंद्र में लाए जीकेऐस में। यहाँ आके, इतने बड़ा नशेड़ी था मैं कि इस देश में किसी ने इतने औंट-पाईं (गलत) काम नहीं करे होंगे जितने मैंने किये होंगे। पर यहाँ से मेरा सुधार हो गया है मैं मानता हूँ कि भईया लोगों ने सहायता मेरी बहोत अच्छी करी, यहाँ मुझे रखा। डेढ़ साल से मैं नशे से दूर हूँ अब मुझे गिलास से नफरत होने लगी जिस गिलास से मैं चाय पीता था उससे ही दारू पीता था वो गिलास आज भी मेरे घर में रखा है उससे डरता हूँ मै। नशे से दिमाग मेरा यहाँ रहने से हटा है नशा मुक्ति केंद्र में जो बातें बताईं लोगों की ऐसी समस्या हर एक इंसान के साथ होती रही है पर मेरे साथ ज्यादा हुई। इसी लिए ये नशे को मैंने बिल्कुल, नशे के पास मेरा दिमाग ही नहीं जाता क्योंकि मेरा यहाँ नशा मुक्ति केंद्र में रहने से ऐसा दिमाग हो गया है कि भईया लोगों ने मुझे इस तरीके से सबकुछ बताया कि ये समस्या क्या है। और आदमी पहले नंबर पे तो खुद से ही समझ जाएगा यहाँ रहने से कि अब मैं नशे से दूर हो गया वो खुद कहा देगा , समय जरूर लगता है पर।