नशा व्यक्ति के लिए अभिशाप बन जाता है

नशा व्यक्ति के लिए अभिशाप बन जाता है

शहाब जाफ़री का एक मशहूर शेर है कि,
चले तो पाँव के नीचे कुचल गई कोई शय
नशे की झोंक में देखा नहीं कि दुनिया है

कोई भी व्यक्ति जब पहली बार नशा करता है तो वह यही सोचता होगा कि उसके एक बार शराब पीने या सिगरेट के एक दो कश लेने से किसी का क्या नुकसान हो सकता है। और जब वह दूसरी बार नशा करता है तो इस बार वह खुद से ये कहता है कि अगली बार से नहीं करूंगा। मगर जब वह तीसरी बार नशा करते समय खुद को रोक नहीं पाता तो इस बार वह आत्मग्लानि से भर जाता है और खुद पर किये हुए भरोसे को तकिये के किनारे रखकर सो जाता है, जैसे कुछ हुआ ही ना हो। वह एक ऐसे चक्रव्यूह में फ़सता चला जाता जिसके अंदर जाना तो आसान है मगर बाहर निकल पाना मुश्किल है।

नशे की दुनिया आपको दुखों के दरिया से निकाल कर सुखों के ऐसे भँवर में ढकेल देती है जहां आप हकीकत की दुनिया से दूर होते चले जाते हैं और आपको अपनी की हुई गलतियों का कोई आभास नहीं होता। और आप ऐसे सुख को बार बार पाने कि इच्छा में ये भूल जाते हैं कि ये सुख कम समय के लिए होता है। ऐसा व्यक्ति अपने परिवार और खुद से जुड़े लोगों के लिए एक ज़हरीले पदार्थ की तरह काम करता हैं जो धीरे धीरे अपने नकारात्मक व्यवहार और मानसिक दुर्बलता के कारण अपने घर के वातावरण को दूषित कर देते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने नशे से मिलने वाले सुख के आगे अपने परिवार के सुख का नाश कर देते हैं।

एक शराबी व्यक्ति ना तो अपनी भावनाओं को समझ पाता है और ना ही किसी और व्यक्ति की भावनाओं की कद्र कर पाता है। नशे में बिताए हुए व्यक्ति का जीवन केवल असंतोष और अपमान से घिरा होता है। वह व्यक्ति अपना पूरा जीवन व्यर्थ के विचारों में बिता देता है। वह कभी कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं कर पाता। ऐसा व्यक्ति अपने जीवन के अंतिम वक़्त में जब अपनी सफलताओं और असफलताओं के बारे में सोचता है तो उसे सिर्फ असफलताएँ ही याद आती हैं। इस पूरे जीवन में उसने अपने परिवार और अपने प्रियजनों को कष्ट के अलावा कुछ नहीं दिया।

दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं हुआ जिसे कभी किसी परेशानी का सामना ना करना पड़ा हो, हर व्यक्ति कहीं ना कहीं किसी मुसीबत और तकलीफों को झेल रहा होता है। मगर कुछ लोग अपनी परेशानियों का हल नशे की अंधेरी गलियों में खोजते हैं और कुछ लोग उम्मीद के उजालों में।

नशा इंसान की कोई जरुरत नहीं है बल्कि एक बुरी आदत है जो बीमारी का रूप ले लेती है जिसे ठीक किया जा सकता है। इंसान का दिमाग एक आदत को अपनाने में 25-30 दिनों का समय लेता है, व्यक्ति चाहे तो नशे की आदत से होने वाले नुकसान से खुद को और अपने परिवार जनों को बचा सकता है। मगर ऐसा करने के लिए उसे प्रबल इच्छा शक्ति की जरूरत होती है, जो धैर्य और अनुशासन से प्रेरित होती है और नशा करने से रोकती है।