नशा मुक्ति केंद्र में कैसे रखा जाता है
हमारे समाज में नशे का चलन बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है जिसके कारण हर घर में कोई ना कोई नशा पीड़ित मिल ही जाता है ।नशा करने वाला व्यक्ति केवल अपने जीवन को अंधकार में नहीं डालता बल्कि उसके साथ उसका पूरा घर भी बर्बाद हो जाता है । घर वाले हर मुमकिन कोशिश करना चाहते हैं कि वो इंसान कैसे भी इस नशे की बुरी अदात को छोड़ दे पर ज़्यादातर मामलों में ये देखा गया है कि घर वालों को ये समझ ही नहीं आता कि किस तरह से उनके घर के नशा पीड़ित सदस्य को वह इस नशे के जाल से निकालें । नशा एक घातक बीमारी है और इसका इलाज करवाने से ही व्यक्ति ठीक हो सकता है और जो सबसे कारगर तारीका है वह है नशा मुक्ति केन्द्र का । पर नशा मुक्ति केंद्र के बारे में इतनी भ्रांतियाँ फैलीं हुईं हैं जिनकी वजह से घर वाले सही समय पर इलाज करवाने में बहुत देर कर देते हैं उनके मन में ऐसे कई सवाल रहते हैं कि नशा मुक्ति केंद्र में क्या होता है, नशा मुक्ति केंद्र में कैसे रखा जाता है, कितना टाइम लगता है । तो आज हम इन सारे सवालों का जवाब लाए हैं जिससे कि आपको नशा मुक्ति केंद्र के काम करने के तरीक़े की पूरी जानकारी मिल जाएगी।
जब कोई भी नशा पीड़ित नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती होते हैं तो सबसे पहले उनका चेकअप होता है जिसमें उनके LFT, RFT, CBC, BLOOD SUGAR ,HIV आदि टेस्ट होते हैं, जिससे कि व्यक्ति की शारीरिक स्थिति नशे का क्या प्रभाव पड़ा है उसका पता चल सके और फिर उन्ही रिपोर्ट्स के आधार पर नशा पीड़ित इंसान के withdrawal और detox का प्रोसेस स्टार्ट होता है इसे आसान भाषा में समझे तो जब कोई इंसान नशा बंद करता है तो उसे कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है जिन्हें हम withdrawal कहते हैं ।
ये पूरा प्रोसेस लगभग 10 से 15 दिन का रहता है कुछ केस में ये समय और भी लंबा जा सकता है जोकि निर्भर करता है मरीज़ की स्तिथि के ऊपर, क्योंकि कई लोगों में जिस नशे को वह इस्तेमाल करते हैं उसके प्रति बहुत ज्यादा शारीरिक निर्भरता हो जाती है जब withdrawal और detox का पार्ट खत्म हो जाता है । अगला पार्ट जो थैरिपी का रहता है वह होता है मनोवैज्ञानिक चिकित्सा का इसमें मनोवैज्ञानिक मनोचिकित्सक और काउंसलर मरीज का असेसमेंट करते हैं, जैसे कि नशे का क्या प्रभाव मरीज की मानसिक स्थिति पर पड़ा है, क्या उसकी कैस हिस्ट्री है, क्या क्या उसके ट्रिगर प्वाइंट हैं जिनकी वजह से वह नशा करते हैं,फिर उसके अनुसार उनकी थैरिपी रहती है । इसमें योग, ध्यान, Behavioral Therapy ,CBT, REBT, Motivational, Interviewing, DBT, Person Centered Therapy, सामूहिक परामर्श, व्यक्तिगत परामर्श, पारिवारिक परामर्श, 12 Staps, AA यानी Alcoholic Ananymous, NA narcotics ananymous, AA/NA fellowship, आध्यात्मिक जाग्रति, therapeutic games. आदि थैरिपी शामिल होतीं हैं ।
यहां एक बात ध्यान देने वाली है दोस्तों जो है person centered therapy यानी नशा मुक्ति में जो इलाज होता है वह हर इंसान के अनुसार अलग अलग हो सकता है क्योंकि हर इंसान की अलग मानसिक और शरीरिक स्तिथि होती है इसीलिए नशे का प्रभाव भी हर इंसान पर अलग अलग होता है। इसीलिए जरूरी नहीं की हर नशा करने वाले को एक जैसी थैरिपी दी जाए और किसी व्यक्ति को नशे से छोड़ने में कितना समय लगेगा वह भी इसी बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति पर नशे का क्या प्रभाव पड़ा है देखिये सालों तक व्यक्ति नशा करता है इस कारण नशा पीड़ित में उस नशे के प्रति मानसिक और शरीरिक दोनों तरह से निर्भर हो जाता है तो बनी बात है कि सारी चीजों को फिर से नॉर्मल होने में समय तो लगेगा ही, अगर आप लोग ये सोचो की नशा मुक्ति में भर्ती होते ही कोई overnight changes आ जाने वाले हैं या कुछ ही समय में व्यक्ति ठीक हो जाएगा तो ये दिमाग से निकाल दीजिये क्योंकि ना ही नशे की बीमारी एक रात में पैदा होती है और ना ही एक रात में ठीक होती है ये एक लम्बी प्रक्रिया है। अब अंत में सवाल बचता है कि नशा मुक्ति केंद्र में रखा कैसे जाता है तो इसका जवाब भी सीधा सा है जिस तरह से स्कूल hostels में students रहते हैं उसी तरह से नशा मुक्ति केंद्र में मरीजों को रखा जाता है, उनका सुबह उठने से लेकर नाईट में सोने तक का पूरा एक रूटीन रहता है । टाइम पर खाना-नाश्ता, टाइम पर क्लासेस, टाइम पर सोना ये पूरा का पूरा एक रूटीन रहता है एक तरह से हम कह सकते हैं कि एक disciplined डेली रूटीन होता है या और आसान भाषा में कहें तो एक अनुशासित दिनचर्या होती है जोकि बहुत जरूरी है क्योंकि एक्टिव एडिक्शन के दौरान हम अपनी हेल्दी लाइफ़स्टाइल को जीना भूल ही जाते हैं हम खाना नहीं खा पाते, हम अपना काम नहीं कर पाते, हम ठीक से सो नहीं पाते, नशे के जाल में फंसे रहने के कारण ना तो हम अपना ख्याल रख पाते हैं और ना ही अपनों का. एक्टिव एडिक्शन की वजह से हम शारीरिक, मानसिक और आर्थिक तौर पर कमजोर हो जाते हैं हम समाज की मुख्यधारा से अलग हट जाते हैं, हम भावनात्मक तौर पर कमजोर हो जाते हैं, इसी वजह से नशा मुक्ति केंद्र में नशे से पीड़ित व्यक्ति के ओवरऑल व्यक्तित्व पर काम होता है जिससे वो शरीरिक और मानसिक दोनों तरह से मजबूत हो सकें ।